ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ठहर गई आसमाँ की नदिया वो जा लगी है उफ़क़ किनारे उदास रंगों की चाँद नय्या उतर गए साहिल-ए-ज़मीं पर सभी खवय्या तमाम तारे

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[कविता] [वीडियो] समर शेष है…. (रामधारी सिंह दिनकर)

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो? किसने कहा, और मत बेधो हृदय

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वीडियो : जेएनयू में पिछले दो साल से इतनी उथल-पुथल क्यूँ है ? | शहला राशिद

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो-ढाई साल से विक्षोभ की परिस्थिति बनी हुई है. कारण अनेक हैं. सरकार द्वारा शोधवृत्ति ख़त्म करने

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