There are many reasons for you to be at AMU Literary Festivals 2017. One of them is their ‘guest list’. Dates: 3, 4, 5
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ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ठहर गई आसमाँ की नदिया वो जा लगी है उफ़क़ किनारे उदास रंगों की चाँद नय्या उतर गए साहिल-ए-ज़मीं पर सभी खवय्या तमाम तारे
[कविता] [वीडियो] समर शेष है…. (रामधारी सिंह दिनकर)
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो? किसने कहा, और मत बेधो हृदय
वीडियो : जेएनयू में पिछले दो साल से इतनी उथल-पुथल क्यूँ है ? | शहला राशिद
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो-ढाई साल से विक्षोभ की परिस्थिति बनी हुई है. कारण अनेक हैं. सरकार द्वारा शोधवृत्ति ख़त्म करने
मैं भी काफ़िर, तू भी काफ़िर | सलमान हैदर
मैं भी काफ़िर, तू भी काफ़िर मैं भी काफ़िर, तू भी काफ़िर फूलों की खुशबू भी काफ़िर शब्दों का जादू भी काफ़िर यह भी
[ Video ] Majma – Hum Ladenge Saathi | Paash
Poetry: Avtar Singh Paash Composition: Ravinder Randhawa Song from ‘Aaj Ke Naam’, a music album by Majma हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिये
Prof. Asad Memorial Program of Lectures | Irfan Habib
These lectures on Indian National Movement were organised by Aligarh Historians Society in memory of late Prof. Asad Ahmad. Prof. Asad Ahmed was born
सुरसुरी ये चाय है सुड़प सुड़प के पी | स्वांग म्यूज़िक बैंड
वर्तमान समय में देश नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है और यह सिलसिला कई वर्षों से चल रहा. देश को इस मुक़ाम पर लाकर