नानक | अल्लामा इक़बाल

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क़ौम ने पैग़ाम-ए-गौतम की ज़रा परवा न की क़द्र पहचानी न अपने गौहर-ए-यकदाना की। आह! बदक़िस्मत रहे आवाज़-ए-हक़ से बे-ख़बर ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर। आशकार उसने किया जो ज़िन्दगी का राज़ था हिन्द को लेकिन ख़याली फ़लसफ़ा पर नाज़ था। शमअे हक़ से जो मुनव्वर हो यह वो महफ़िल न…

इस्लाम का पैगाम: धर्म की बाबत जबरदस्ती कत्तई नहीं की जा सकती | विनोबा भावे

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सारांश यह है कि इस्लाम का यह सच्चा स्वरूप है । इसे ठीक – ठीक पहचानना चाहिए और उसका सार ग्रहण कर लेना चाहिए । इन्हीं सब के आधार पर इस्लाम टिका हुआ है, किसी जोर जबरदस्ती के आधार पर नहीं ।  कुरान में साफ़ तौर पर कहा गया है , “ला इकराह फ़िद्दीन “…

इस्लाम में ब्याजखोरी का तीव्र निषेध | विनोबा भावे

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इस्लाम ने ब्याजखोरी का भी तीव्र निषध किया है । सिर्फ़ चोरी न करना इतना ही नहीं, आपकी आजीविका भी शुद्ध होनी चाहिए । गलत रास्ते से की गई कमाई को शैतान की कमाई कहा गया है। इसीलिए ब्याज लेने की भी मनाही की गई है। कहा गया है कि सूद पर धन मत दो…

इस्लाम में एकेश्वरवाद का बहुमूल्य संदेश और ज़कात| विनोबा भावे

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इस्लाम का एकेश्वर (तौहीद) का संदेश भी बहुमूल्य है। सूफ़ी संत और फ़कीर महाराष्ट्र में भी गाँव – गाँव घूमते हुए, “ईश्वर एक है ” कहते रहे । उसी दौर में महाराष्ट्र का एक व्यक्ति पैदल ही निकला और ठेठ पंजाब तक घूम आया । वह पंजाब में बीस साल रहा । वे थे ,…

इस्लाम की असल पहचान : मानव-मानव का नाता बराबरी का है | विनोबा भावे

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यह निर्विवाद हकीकत है कि आरंभिक ज़माने में इस्लाम का प्रचार त्याग और कसौटी पर ही हुआ । प्रारंभ में इस्लाम का प्रचार तलवार से नहीं , आत्मा के बल से हुआ । कार्लाइल ने कहा है कि प्रारंभ में इस्लाम अकेले पयगंबर मोहम्मद के हृदय में ही था , न ? तब क्या वे…

संघ के मनगढ़ंत इतिहास और बढ़ते सांप्रदायिक खतरे : इरफ़ान हबीब

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लगातार तर्कशील एवं प्रगतिशील ताकतों पर हो रहे हमलों के विरोध में 1 नवम्बर 2015 को दिल्ली के मावलंकर सभागार में आयोजित ‘प्रतिरोध’ नामक सभा में इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने अपनी बात रखी. प्रोफेसर हबीब ने इतिहास के साम्प्रदायिकरण में सत्ता की भागीदारी पर चर्चा की. हबीब के शब्दों में, “ जब भी कोई फ़ासिस्ट…