क़ौम ने पैग़ाम-ए-गौतम की ज़रा परवा न की क़द्र पहचानी न अपने गौहर-ए-यकदाना की। आह! बदक़िस्मत रहे आवाज़-ए-हक़ से बे-ख़बर ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर। आशकार उसने किया जो ज़िन्दगी का राज़ था हिन्द को लेकिन ख़याली फ़लसफ़ा पर नाज़ था। शमअे हक़ से जो मुनव्वर हो यह वो महफ़िल न…