जम्हूरियत | हबीब जालिब

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दस करोड़ इंसानों ! ज़िन्दगी से बेगानों ! सिर्फ़ चंद लोगों ने हक़ तुम्हारा छीना है ख़ाक ऐसे जीने पर यह भी कोई जीना है बे-शऊर भी तुमको बे-शऊर कहते हैं सोचता हूँ ये नादाँ किस हवा में रहते हैं और ये क़सीदा-गो फ़िक्र है यही जिनको हाथ में अलम लेकर तुम न उठ सको…