इस्लाम का एकेश्वर (तौहीद) का संदेश भी बहुमूल्य है। सूफ़ी संत और फ़कीर महाराष्ट्र में भी गाँव – गाँव घूमते हुए, “ईश्वर एक है ” कहते रहे । उसी दौर में महाराष्ट्र का एक व्यक्ति पैदल ही निकला और ठेठ पंजाब तक घूम आया । वह पंजाब में बीस साल रहा । वे थे , नामदेव। नामदेव ने भी कहा कि हम भी एक ईश्वर में ही मानते हैं ; परंतु विविध देवताओं की पूजा करते – करते ईश्वर के एकत्व का यह विचार लगभग भुला चुके हैं। इसलिए नामदेव ईश्वर के एकत्व का पुन: प्रतिपादन करने लगे । उन्होंने कहा कि एक बार जब राजा से मुलाकात हो जाती है तब सेवकों को कौन पूछता है ? गणेश ,शारदा आदि तो ईश्वर के सेवक हैं। स्वामी के साक्षात दर्शन हो जाने के बाद चाकरों की क्या जरूरत ? नामदेव ने एक भजन में यह भी कहा कि मन्दिर – मस्जिद दोनों की पूजा छोड़ो तथा जो अंतर्यामी ईश्वर है उसकी तरफ़ रुख़ करो।
बंगाल में भी इस्लाम और ईसाइयत का बहुत असर था । तब वहां राजा राममोहन राय और देवेन्द्रनाथ टैगोर जैसे लोग खड़े हुए। उन्होंने कहा कि अपने यहाँ भी एकेश्वर की बात कही गई है । श्वेताश्वर उपनिषद में एकेश्वर का प्रतिपादन करने वाले अनेक वचन मिलते हैं । श्वेताश्वर कहता है – “एको हि रुद्र:”। इन लोगों ने श्वेताश्वर उपनिषद का अध्ययन किया । ब्रह्मोसमाज की प्राथना में श्वेताश्वर उपनिषद के कुछ श्लोक भी गाये जाते हैं । ईश्वर “एकमेवाद्वितीयम “ है । ईश्वर एक और अद्वितीय है , उसकी कौन सी उपमा दी जा सकती है? ईश्वर एक ही है। उसके जैसा अन्य कुछ नहीं ।
यह भी पता चलता है कि चैतन्य महाप्रभु हों, कबीर दास हों या गुरु नानक हों- सभी के जीवन और चिंतन पर जितना असर वैष्णव धर्म का पड़ा है, उतना ही कुरान का भी पड़ा है । नानक ने तो “जपुजी” में क़ुरान का उल्लेख भी किया है । सिखों के गुरुग्रंथसाहब में भी गुरुओं की वाणी के साथ ही साथ मुसलमान संत बाबा फ़रीद की वाणी भी है । सभी संतों के हृदय एक होते हैं । गुरु ग्रंथसाहब में ऐसे विचार जगह-जगह देखने को मिल जायेंगे , भले वेद हो या कुरान, जो सार है तो वह है भगवान का नाम,और उसे हमने लिया है।
नियमित जकात दो !
इसी प्रकार इस्लाम का एक अन्य संदेश है,ज़कात का तथा ब्याज के निषेध का । कुरान में आता है,“…व आतज़ ज़कात” – और ज़कात (नियमित दान ) देना चाहिए । खैरात तथा जकात । खैरात यानि ईश्वर के प्रति प्रेम से प्रेरित हो अनाथ , याचकों आदि को धन देना । जकात यानि नियमित दान । “…व मिम्मा रजाक्नाहुम युन्फ़िकून” – जो कुछ भी तेरे पास है , उसमें से दूसरे को देना चाहिए । देना धर्म है तथा यह सब पर लागू होता है , इसलिए गरीब भी दें । देने का धर्म हर व्यक्ति को निभाना है । जो कुछ थोड़ा सा भी मिलता हो उसमें से पेट काट कर देना चाहिए । किसान क्या करता है ? जब फसल आती है तब उसमें से सर्वोत्तम बीज अलग से रख लेता है । अगले साल बोने के लिए । खुद के लिए खाने भर का न हो तब यह बियारण निकाल लेता है, उसे नहीं खाता । देखा जाए तो यह उसकी क़ुरबानी है । इस पर अल्लाह खुश होता है तथा उसे बियारण का दस गुना करके देता है । इसी वजह से हर व्यक्ति को अपना फ़र्ज अदा करना चाहिए ।
पानी से हमे सबक लेना चाहिए । जैसे पानी हमेशा नीचे की तरफ़ दौड़ता है,वैसे ही हमे भी समाज के सबसे दु:खी,गरीब की इमदाद (सहायता ) में दौड़ पड़ना चाहिए । मुझे दो रोटियों की भूख है और मेरे पास एक ही रोटी है तो भी मुझे उसमें से एक टुकड़ा दूसरे को देकर ही ख़ुद खाना चाहिए । इसी में मानवता है । यदि आप ऊपर की तरफ़ देखते रहेंगे तब आपको लगेगा कि मुझे अधिक,और अधिक मिलता रहे । इस प्रकार लोभ लालसा बढ़ाने में मानवता नहीं है । यह मनुष्य के भेष में छुपी हैवानियत है ।
एक और बात भी कही है कि आपने जो बहुत बड़ा संग्रह किया है,उसमें से देने की बात नहीं है । वैसा संग्रह करना तो मूल रूप में ही पाप माना गया है । आप जिसे “रिज्क” यानि रोजी कहते हैं , भगवान की कृपा से जो आपको प्रति दिन मिलती है , उसमें से आपको देना है । यह बात सभी के लिए कही गई है ,मात्र रईसों के लिए नहीं । तथा यह सभी धर्मों ने कही है ।
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गुजराती पत्रिका “भूमिपुत्र” में विनोबा भावे के इस्लाम की बाबत प्रकाशित विचार.
विशेष आभार: श्री अफ़लातून अफ़लू
श्री अफ़लातून अफ़लू समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय संगठन सचिव हैं. आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU), वाराणसी से उच्च-शिक्षा प्राप्त की. आचार्य विनोबा भावे के ये अनमोल लेख श्री अफ़लातून के ब्लॉग “काशी विश्विद्यालय” से लिए गये हैं.