[वीडियो] कलाम-ए-ख़ुसरो: आमादा बा क़त्ल-ए-मन

 

हज़रत अमीर ख़ुसरो का मशहूर फ़ारसी कलाम जो उन्होंने अपने महबूबे हक़ीक़ी की शान में लिखा है.

आवाज़ और संगीत: मौलवी हैदर हसन क़व्वाल और पार्टी


आमादा बा क़त्ल-ए-मन आँ शोख़ सितमगारे

ईं तुर्फ़ा तमाशा बीं ना करदा गुनाहगारे !

वो शोख़ सितमगर मेरे क़त्ल को एकदम तैयार बैठा है

यह अजीब तमाशा है क्यूँकी मैं गुनाहगार नहीं हूँ [सब कुछ तो उसी ने किया है]  !

ख़्वाही कि शिफ़ा बाशुद, बीमार-ए-मुहब्बत रा

यक जुरा’ ख़ुदारा दे, अज़ शरबत-ए-दीदारे

[मेरे क़ातिल !] अगर चाहता है कि [मुझ] मुहब्बत के बीमार को शिफ़ा मिले

तो फिर ख़ुदा के वास्ते मुझे अपने दीदार का शरबत दे !

ऐ ईसा-ए-बीमाराँ दर हिज्र-ए-तू रंजूरम

शायद न ख़बरदारी अज़ हालत-ए-बीमारे

ऐ बीमारों के मसीहा ! मैं तेरे हिज्र (वियोग) में दुखी हूँ 

शायद तू नहीं जानता कि इस बीमार की क्या हालत हो गयी  है.

गर नामो निशाने मन पुरसंद, बिगो क़ासिद

आवारा-ओ-मजनूने, रुसवा सरे बाज़ारे

अगर मेरा नामो निशाँ पूछें तो, ऐ क़ासिद (postman) !उनसे कहना 

एक आवारा और पागल है जो सरे बाज़ार [आपके इश्क़ में] रुसवा है.

दर लज़्ज़ते दीदारश ख़ुसरो चे तवाँ गुफ़्तन

सर दादम ओ जाँ दादम ना दीदा रुख़-ए-यारे

उसके दीदार की लज़्ज़त [अब] ख़ुसरो क्या बताए 

सर दिया, और जान दी लेकिन महबूब का चेहरा न देखा !! 


Video Credits: The Dream Journey, Pakistan 

 

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