लगातार तर्कशील एवं प्रगतिशील ताकतों पर हो रहे हमलों के विरोध में 1 नवम्बर 2015 को दिल्ली के मावलंकर सभागार में आयोजित ‘प्रतिरोध’ नामक सभा में इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने अपनी बात रखी. प्रोफेसर हबीब ने इतिहास के साम्प्रदायिकरण में सत्ता की भागीदारी पर चर्चा की. हबीब के शब्दों में,
“ जब भी कोई फ़ासिस्ट शक्ति बढती है, तब ये कोशिश की जाती है कि एक मनगढ़ंत इतिहास पेश किया जाए”.
और ठीक उसी तरह वर्तमान सरकार भी, जो हिटलर के आदर्शों पर चलने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इशारों पर कार्य कर रही है, वही काम करना चाहती है. हबीब ने आर.एस.एस की अंग्रेजों के साथ नज़दीकी का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि अगर वे वाकई देशभक्त थे तो आखिर आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान नज़र क्यों नहीं आता.
वर्तमान सरकार के गठन के लिए हबीब ने इसी मनगढ़ित इतिहास को कारण बताया. इसी मंच से हबीब ने धर्मनिरपेक्ष ताकतों की एकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि फासीवादी सोच से लड़ने हेतु उन सभी शक्तियों के एक साथ एक मंच पर आना होगा, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से एक प्रगतिशील समाज का गठन करना चाहते हैं. और तभी इन ताकतों की मुखाफलत संभव है.
इण्डियन कल्चर फ़ोरम और न्यूज़ क्लिक डॉट इन के सौजन्य से प्रस्तुत विडियो छात्र-छात्राओं और दीगर अवाम की सेवा में प्रस्तुत है.
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साभार: इण्डियन कल्चर फ़ोरम और न्यूज़ क्लिक डॉट इन
*वीडियो में पेश किये गए तथ्य वक्ता के विचार हैं.