हज़रत अमीर ख़ुसरो ने यह कलाम अपने मुर्शिद (Spiritual Master) हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की शान में लिखा है.
ईद के मौक़े पर अवाम इण्डिया की ख़ास पेशकश.
कलाम को उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान साहब और पार्टी ने अपने सुरों से पिरोया है.
عیدگاه ما غریبان کوی تو
این بہ ساعت عید، دیدن روی تو
هم پردیسیوں کی عیدگاہ آپ کا کوچہ ہے
آپ کا چہرا دیکھنے کا لمحہ ہی عید ہوتا
ईदगाह-ए-मा ग़रीबाँ कूए तो
ईंबा साअत-ए-ईद दीदन रूए तो
हम परदेसियों की ईदगाह आप का कूचा है
आपका चेहरा देखने का लम्हा ही ईद होता है.
کعبہ من، قبلہ من روی تو
سجدہ گاہ عاشکاں ابروی تو
میرا کعبہ و قبلہ آپ کا چہرا ہے
آپ کی ابرو، عاشقوں کی سجدہ گاہ ہے
काबा-ए-मन, क़िबला-ए-मन रूए तो
सजदागाह-ए-आशिकाँ अबरूए तो.
मेरा काबा और क़िबला आपका चेहरा है
आपकी अबरू (eyebrow) आशिक़ों की सजदागाह है.
صد هزاران عید قربانت کنم
ای هلال ما، خم ابروی تو
تجھ پر لاکھوں عیدیں قربان کر دوں
اے ہمارے ماہ عید، آپ کی ابرو کے خم پر
सद-हज़ाराँ ईद क़ुर्बानत कुनम
ऐ हिलाल-ए-मा ख़म अबरूए तो
ऐ महबूब! आप पर लाखों ईद क़ुर्बान कर दूँ
ऐ मेरे ईद के चाँद ! [और] आपकी ज़ुल्फ़ के बल पर भी.
دست بکشا جانب زنبیل ما
آفرین بر ھمت بازوی تو
ہمارے کاسہ کی طرف ھاتھ بڑھائیں
آپ کے بازو کی ھمت کو سلام ہے
दस्त बीकुशा जानिब-ए-जंबील-ए-मा
आफ़रीं बर हिम्मत-ए-बाज़ुए तो
हमारे कासा की तरफ़ हाथ बढ़ाएं
आपके बाज़ू की हिम्मत को सलाम
یا نظام الدین محبوب خدا
جملہ محبوبان غلام روی تو
اے الله کے محبوب ، نظام ا لدین اولیا
سب محبوب آپ کے رخ کے غلام ہیں
या निज़ामुद्दीन महबूब-ए-ख़ुदा
जुमला मह्बूबाँ ग़ुलाम रूए तो
ऐ अल्लाह के महबूब, निज़ामुद्दीन औलिया !
सब महबूब आप के चेहरे के ग़ुलाम हैं