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इस्लाम की असल पहचान : मानव-मानव का नाता बराबरी का है | विनोबा भावे

Photo-Horvat

यह निर्विवाद हकीकत है कि आरंभिक ज़माने में इस्लाम का प्रचार त्याग और कसौटी पर ही हुआ । प्रारंभ में इस्लाम का प्रचार तलवार से नहीं , आत्मा के बल से हुआ । कार्लाइल ने कहा है कि प्रारंभ में इस्लाम अकेले पयगंबर मोहम्मद के हृदय में ही था , न ? तब क्या वे अकेले तलवार लेकर लोगों को मुसलमान बनाने निकले थे ? इस्लाम का प्रचार-प्रसार उन्होंने आत्मा के बल से किया था । सभी प्रारंभिक खलीफ़ा भी धर्म-निष्ठ थे तथा उनकी धर्म-निष्ठा के कारण ही इस्लाम का प्रचार हुआ ।

इस्लाम का मतलब ही है शांति तथा ईश्वर-शरणता । इसके सिवा इस्लाम का कोई तीसरा अर्थ नहीं है । इस्लाम शब्द में “सलम” धातु है । जिसका अर्थ है शरण में जाना । इस धातु से ही “सलाम” शब्द बना है। सलाम का मतलब शान्ति । इस्लाम का अर्थ पर्मेश्वर की शरण में जाना । परमेश्वर की शरण में जाइएगा तो शान्ति पाइएगा ।

मानव – मानव का नाता बराबरी का है

इस्लाम में सूफ़ी हुए । सूफ़ी यानी कुरान का सूक्ष्म अर्थ करने वाले । भारत में इस्लाम का प्रथम प्रचार सूफ़ियों ने किया । इस वास्ते ही इस्लाम भारत में लोकप्रिय बना । मुस्लिम राजा या लुटेरे तो बाद में आये, और वे आए और लौट गये । परंतु सूफ़ी फ़कीर यहाँ आए और देश भर में घूम कर प्रचार किया । इस्लाम में एक प्रकार का भाईचारा मान्य है । इस्लाम धर्म की यह भाईचारे की भावना हम सब को अपना लेनी चाहिए। यहाँ की ब्रह्मविद्या उससे मजबूत होगी ।

“सब में एक ही आत्मा बसती है” – यह कहने वाले हिंदू धर्म में अनेक जातिभेद , ऊँच-नीच के भेद तथा अन्य अनेक प्रकार के भेदभाव हैं । हमारी सामाजिक व्यवस्था में समानता की अनुभूति नहीं होती है । यह एक बहुत बड़ी विसंगति है , विडंबना है ।  जबकि इस्लाम में जैसे एकेश्वर का संदेश है , वैसे ही सामाजिक व्यवहार में संपूर्ण अभेद का भी संदेश है । इस्लाम कहता है कि  मानव – मानव के बीच किसी प्रकार का भेद नहीं करना चाहिए , मानव – मानव का नाता बराबरी का है । इस्लाम की इस बात का असर भारत के समाज पर पड़ा है ।  हमारे यहाँ जो कमी थी उसको इस्लाम ने पूरा किया । खास तौर पर फ़कीरों और सूफ़ी संतों ने जो प्रचार किया उसका यहाँ बहुत असर पड़ा । कई संघर्ष हुए , लड़ाइयां हुईं, इसके बावजूद बाहर से आई एक अच्छी और सच्ची चीज का यहाँ के समाज पर गहरा असर पड़ा । इस्लाम का यह संदेश बहुत पवित्र संदेश है ।

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गुजराती पत्रिका “भूमिपुत्र” में विनोबा भावे के इस्लाम की बाबत प्रकाशित विचार.

आचार्य विनोबा भावे के ये लेख उनकी पुण्यतिथि (15 नवम्बर )के मौक़े पर पाठकों (विशेषकर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के विद्यार्थियों ) की सेवा में पुन:प्रकाशित किये  जा रहे हैं .

विशेष आभार: श्री अफ़लातून अफ़लू

श्री अफ़लातून अफ़लू समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय संगठन सचिव हैं. आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU), वाराणसी से उच्च-शिक्षा प्राप्त की. आचार्य विनोबा भावे के ये अनमोल लेख श्री अफ़लातून के ब्लॉग “काशी विश्विद्यालय” से लिए गये हैं.

इस लेख की मूल प्रति “काशी विश्विद्यालय” ब्लॉग पर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

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आचार्य विनोबा भावे के बारे में अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़ें और हिन्दी में यहाँ पढ़ें. (साभार: विकिपीडिया मुक्त ज्ञान कोष )

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