मैं नीर भरी दुख की बदली ! | महादेवी वर्मा

मैं नीर भरी दुख की बदली!

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स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झारिणी मचली!

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मेरा पग-पग संगीत भरा

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा

नभ के नव रंग बुनते दुकूल

छाया में मलय-बयार पली।

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मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल

चिन्ता का भार बनी अविरल

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन-अंकुर बन निकली!

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पथ को न मलिन करता आना

पथ-चिह्न न दे जाता जाना;

सुधि मेरे आगन की जग में

सुख की सिहरन हो अन्त खिली!

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विस्तृत नभ का कोई कोना

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना, इतिहास यही-

उमड़ी कल थी, मिट आज चली!

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Published on

26/03/2017 11:55

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