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दिवाली, नज़ीर अकबराबादी और हमारे समाज की तस्वीरें




नज़ीर अकबराबादी का नाम ज़हन में आते ही भारतीय समाज की कई तस्वीरें सामने आ जाती हैं. आदमीनामा, बन्जारानामा, होली और झोंपड़ा जैसी नज़्मे इसकी ज़िन्दा मिसाल हैं. समरसता, सौहार्द से ओतप्रोत ऐसी ही तस्वीरें नज़ीर अकबराबादी की इन दो नज़्मों "दिवाली" और "सामान दीवाली का" में दिखाई देती हैं. 

साथ में है एक वीडियो अभिनेता ज़ीशान अयूब की, 'दिवाली' को पढ़ते हुए: 


दीवाली | नज़ीर अकबराबादी 

हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं ।

कि लाखों झमकें हर एक घर में जगमगाती हैं ।

चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।

मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।1।
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गुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते-फिरते हैं ।

जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।

हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।

इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।2।
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मिठाईयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं ।

तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं ।

नबात, सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं ।

तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।3।
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जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं ।

तो लौंज खजले यही मसनद लगाए बैठे हैं ।

इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं ।

तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।4।
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उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग ।

यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग ।

मगध का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग ।

दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।5।
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दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है ।

तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है ।

कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है ।

कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।6।
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कोई खिलौनों की सूरत को देख हँसता है ।

कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है ।

बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है ।

तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।7।
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और चिरागों की दुहरी बँध रही कतारें हैं ।

और हर सू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं ।

हुजूम, भीड़ झमक, शोरोगुल पुकारे हैं ।

अजब मज़ा है, अजब सैर है अजब बहारें हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।8।
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अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है ।

दिवाल एक नहीं लीपने से खाली है ।

जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है ।

गरज़ मैं क्या कहूँ ईंट-ईंट पर दीवाली है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।9।
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जो गुलाब-रू हैं सो हैं उनके हाथ में छड़ियाँ ।

निगाहें आशि‍कों की हार हो गले पड़ियाँ ।

झमक-झमक की दिखावट से अँखड़ियाँ लड़ियाँ ।

इधर चिराग उधर छूटती हैं फुलझड़ियाँ ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।10।
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क़लम कुम्हार की क्या-क्या हुनर जताती है ।

कि हर तरह के खिलौने नए दिखाती है ।

चूहा अटेरे है चर्खा चूही चलाती है ।

गिलहरी तो नव रुई पोइयाँ बनाती हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।11।
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कबूतरों को देखो तो गुट गुटाते हैं ।

टटीरी बोले है और हँस मोती खाते हैं ।

हिरन उछले हैं, चीते लपक दिखाते हैं ।

भड़कते हाथी हैं और घोड़े हिनहिनाते हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।12।
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किसी के कान्धे ऊपर गुजरियों का जोड़ा है ।

किसी के हाथ में हाथी बग़ल में घोड़ा है ।

किसी ने शेर की गर्दन को धर मरोड़ा है ।

अजब दीवाली ने यारो यह लटका जोड़ा है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।13।
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धरे हैं तोते अजब रंग के दुकान-दुकान ।

गोया दरख़्त से ही उड़कर हैं बैठे आन ।

मुसलमां कहते हैं ‘‘हक़ अल्लाह’’ बोलो मिट्ठू जान ।

हनूद कहते हैं पढ़ें जी श्री भगवान ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।14।
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कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनख़नाहट है ।

कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है ।

कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है ।

अजब मज़े की चखावट है और खिलावट है ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।15।
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‘नज़ीर’ इतनी जो अब सैर है अहा हा हा ।

फ़क़्त दीवाली की सब सैर है अहा हा हा ।

निशात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा ।

जिधर को देखो अजब सैर है अहा हा हा ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।

बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।16।

साभार: हिन्दी कविता 




सामान दिवाली का | नज़ीर अकबराबादी 
साभार : रेख्ता 
हर इक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का

हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का

सभी के दिल में समाँ भा गया दिवाली का

किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दीवाली का

अजब बहार का है दिन बना दिवाली का
जहाँ में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार

किसी ने नक़्द लिया और कोई करे है उधार

खिलौने खेलों बताशों का गर्म है बाज़ार

हर इक दुकाँ में चराग़ों की हो रही है बहार

सभों को फ़िक्र है अब जा-ब-जा दिवाली का
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई

पुकारते हैं कि ''ला ला! दिवाली है आई''

बताशे ले कोई बर्फ़ी किसी ने तुलवाई

खिलौने वालों की इन से ज़ियादा बिन आई

गोया उन्हों के वाँ राज  गया दिवाली का
सिरफ़ हराम की कौड़ी का जिन का है बेवपार

उन्हों ने खाया है इस दिन के वास्ते है उधार

कहे है हँस के क़रज़-ख़्वाह से हर इक इक बार

दिवाली आई है सब दे दिलाएँगे  यार

ख़ुदा के फ़ज़्ल से है आसरा दिवाली का
मकान लेप के ठलिया जो कोरी रखवाई

जला चराग़ को कौड़ी वो जल्द झनकाई

असल जुआरी थे उन में तो जान सी आई

ख़ुशी से कूद उछल कर पुकारे  भाई

शुगून पहले करो तुम ज़रा दिवाली का
शगुन की बाज़ी लगी पहले यार गंडे की

फिर उस से बढ़ के लगी तीन चार गंडे की

फिरी जो ऐसी तरह बार बार गंडे की

तो आगे लगने लगी फिर हज़ार गंडे की

कमाल निर्ख़ है फिर तो लगा दिवाली का
किसी ने घर की हवेली गिरो रखा हारी

जो कुछ थी जिंस मयस्सर बना बना हारी

किसी ने चीज़ किसी किसी की चुरा छुपा हारी

किसी ने गठरी पड़ोसन की अपनी ला हारी

ये हार जीत का चर्चा पड़ा दिवाली का
किसी को दाव पे लानक्की मूठ ने मारा

किसी के घर पे धरा सोख़्ता ने अँगारा

किसी को नर्द ने चौपड़ के कर दिया ज़ारा

लंगोटी बाँध के बैठा इज़ार तक हारा

ये शोर  के मचा जा-ब-जा दिवाली का
किसी की जोरू कहे है पुकार  फड़वे

बहू की नौग्रह बेटे के हाथ के खड़वे

जो घर में आवे तो सब मिल किए हैं सौ घड़वे

निकल तू याँ से तिरा काम याँ नहीं भड़वे

ख़ुदा ने तुझ को तो शोहदा किया दिवाली का
वो उस के झोंटे पकड़ कर कहे है मारुँगा

तिरा जो गहना है सब तार तार उतारूँगा

हवेली अपनी तो इक दाव पर मैं हारूँगा

ये सब तो हारा हूँ ख़ंदी तुझ भी हारूँगा

चढ़ा है मुझ को भी अब तो नशा दिवाली का
तुझे ख़बर नहीं ख़ंदी ये लत वो प्यारी है

किसी ज़माने में आगे हुआ जो ज्वारी है

तो उस ने जोरू की नथ और इज़ार उतारी है

इज़ार क्या है कि जोरू तलक भी हारी है

सुना ये तू ने नहीं माजरा दिवाली का
जहाँ में ये जो दीवाली की सैर होती है

तो ज़र से होती है और ज़र बग़ैर होती है

जो हारे उन पे ख़राबी की फ़ैर होती है

और उन में आन के जिन जिन की ख़ैर होती है

तो आड़े आता है उन के दिया दिवाली का
ये बातें सच हैं  झूट उन को जानियो यारो!

नसीहतें हैं उन्हें दिल से मानियो यारो!

जहाँ को जाओ ये क़िस्सा बखानियो यारो!

जो ज्वारी हो  बुरा उस का मानियो यारो

'नज़ीर' आप भी है ज्वारिया दीवाली का
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